Wellnesshealthorganic.com https://wellnesshealthorganic.com Wellnesshealthorganic Fri, 20 Dec 2024 13:30:34 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://wellnesshealthorganic.com/wp-content/uploads/2024/06/cropped-Green_and_White_Circle_Modern_Organic_Shop_Logo-removebg-preview-e1718881254890-32x32.png Wellnesshealthorganic.com https://wellnesshealthorganic.com 32 32 Vitamin B12 Deficiency Men: पुरुषों में Vitamin-B12 की कमी के कारण और लक्षण: जानें कैसे करें पहचान https://wellnesshealthorganic.com/vitamin-b12-deficiency-men/ https://wellnesshealthorganic.com/vitamin-b12-deficiency-men/#respond Fri, 20 Dec 2024 13:30:34 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5784 Vitamin B12 Deficiency Men: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और बदलती जीवनशैली का सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. खासकर पुरुषों में, बदलते खानपान और अस्वास्थ्यकर आदतों के कारण पोषक तत्वों की कमी एक आम समस्या बनती जा रही है. इनमें से एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है Vitamin B12, जो हमारे शरीर के सही कार्यों के लिए बेहद जरूरी है. यह विटामिन न केवल शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है, बल्कि मस्तिष्क और नसों के स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है. आइए जानते हैं पुरुषों में Vitamin B12 की कमी (Vitamin B12 Deficiency Men) के मुख्य कारण, इसके लक्षण और इसे दूर करने के उपाय.

विटामिन B12 की कमी के कारण(Vitamin B12 Deficiency Men)

1. शाकाहारी आहार: जो पुरुष केवल शाकाहारी भोजन करते हैं, उनके शरीर में Vitamin B12 की कमी अधिक देखने को मिलती है क्योंकि यह मुख्यतः मांस, अंडे और डेयरी उत्पादों में पाया जाता है.
2. अब्जॉर्ब करने में समस्या: कई बार शरीर सही तरीके से Vitamin B12 को एब्जॉर्ब नहीं कर पाता है। यह समस्या आमतौर पर Digestive Disorders के कारण हो सकती है.
3. अधिक शराब का सेवन: ज्यादा शराब पीने से शरीर में Vitamin B12 के एब्जॉर्पशन की क्षमता घट जाती है.
4. ऑटोइम्यून डिसऑर्डर: परनिशियस एनीमिया जैसी बीमारियां छोटी आंत में विटामिन B12 के अवशोषण को रोक सकती हैं.

विटामिन B12 की कमी के लक्षण

1. थकान और कमजोरी: Vitamin B12 की कमी से शरीर में रेड ब्लड सेल की संख्या घट जाती है, जिससे ऑक्सीजन का संचार सही तरीके से नहीं हो पाता और व्यक्ति हमेशा थकान महसूस करता है.
2. एनीमिया: त्वचा का पीला पड़ जाना और सांस लेने में कठिनाई होना Vitamin B12 की कमी के सामान्य संकेत हैं.
3. नसों की समस्या: अक्सर हाथ-पैर सुन्न होना या झुनझुनी महसूस होना भी इसके लक्षण हो सकते हैं.
4. दिल की धड़कनों का अनियमित होना: Vitamin B12 की कमी से हार्ट रेट अनियमित हो सकता है, जिससे दिल की समस्याएं हो सकती हैं.

विटामिन B12 की कमी दूर करने के उपाय

1. आहार में सुधार: अपने आहार में मांस, चिकन, मछली, अंडे, और डेयरी उत्पाद जैसे दूध और पनीर शामिल करें। ये Vitamin B12 Sources हैं.
2. विटामिन B12 सप्लीमेंट्स: डॉक्टर की सलाह से Vitamin B12 टैबलेट्स या इंजेक्शन लें। यह कमी को तेजी से पूरा करने का प्रभावी तरीका है.
3. हेल्दी लाइफस्टाइल: शराब और जंक फूड से बचें और नियमित रूप से पोषण युक्त भोजन करें.

सही खानपान और जीवनशैली में सुधार करके आप आसानी से Vitamin B12 की कमी को दूर

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Winter Heart Care Tips: सर्दियों में दिल का रखें खास ख्याल, ये टिप्स अपनाकर आज ही करे रूटीन में बदलाव https://wellnesshealthorganic.com/winter-heart-care-tips/ https://wellnesshealthorganic.com/winter-heart-care-tips/#respond Fri, 20 Dec 2024 10:18:33 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5777

Winter Heart Care Tips: कहते हैं कि दिल(Heart) स्वस्थ हो तो जिंदगी खुशहाल रहती है. लेकिन ठंड का मौसम आते ही दिल से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगती हैं. Heart Health को बनाए रखने के लिए सर्दियों में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे आप अपने दिल को जवां और स्वस्थ रख सकते हैं.

ठंड से बचाव सबसे जरूरी(Winter Heart Care Tips)

सर्दियों में दिल को हेल्दी रखने के लिए सबसे पहला कदम है ठंड से बचाव. ठंड का सीधा असर दिल पर पड़ता है और अत्यधिक ठंड लगने से दिल की धड़कनें बंद होने तक की नौबत आ सकती है. ठंड के मौसम में Body Temperature बनाए रखने के लिए गर्म कपड़े पहनें और खुद को ठंड से बचाएं. डॉक्टर भी सलाह देते हैं कि ठंड में बाहर निकलते समय सिर, कान और पैर अच्छी तरह ढके रहें. साथ ही, कोशिश करें कि ठंड में सुबह जल्दी उठने से बचें.

गुनगुना पानी पिएं (Warm Water)

सर्दियों में ठंडा पानी पीने से बचें, क्योंकि यह हार्ट के लिए नुकसानदायक हो सकता है. इसके बजाय, गुनगुना पानी पिएं. Warm Water पीने से न केवल दिल स्वस्थ रहता है, बल्कि यह पूरे शरीर के लिए फायदेमंद है. आप चाहें तो गुनगुने पानी को थर्मस में रखकर दिनभर इस्तेमाल कर सकते हैं. गुनगुने पानी का सेवन ब्लड सर्कुलेशन को भी बेहतर बनाता है और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है.

एक्सरसाइज और योग का महत्व

सर्दियों में दिल को मजबूत रखने के लिए हल्की-फुल्की एक्सरसाइज और योग करें. हालांकि, ध्यान रखें कि सुबह उठते ही ज्यादा स्ट्रेस वाली एक्सरसाइज से बचें. पहले शरीर का तापमान सामान्य करें और फिर धीरे-धीरे वॉक करें या घर पर ही Yoga for Heart करें. यह न केवल दिल को फिट रखता है, बल्कि पूरे शरीर को एक्टिव बनाता है.

नशे से दूरी बनाए रखें

सिगरेट, शराब और तंबाकू जैसी चीज़ें दिल के लिए बेहद खतरनाक हैं। सर्दियों में इनके सेवन से हार्ट से जुड़ी समस्याओं का खतरा और बढ़ जाता है. Healthy Lifestyle अपनाएं और इन बुरी आदतों से दूरी बनाएं। इनसे बचकर आप अपने दिल को लंबे समय तक स्वस्थ रख सकते हैं.

सर्दियों में इन आसान टिप्स को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और दिल को हेल्दी रखें. याद रखें, दिल स्वस्थ रहेगा तो आप भी खुश और सेहतमंद रहेंगे.

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Footwear-Related Health Issues: क्या आपके जूते बन रहे हैं बीमारी की वजह? जानें सेहत से जुड़ी ये अहम बातें https://wellnesshealthorganic.com/footwear-related-health-issues/ https://wellnesshealthorganic.com/footwear-related-health-issues/#respond Thu, 19 Dec 2024 11:28:01 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5771
Footwear-Related Health Issues: जूते हमारे रोजमर्रा के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गलत जूते पहनने से कई स्वास्थ्य समस्याएं(Footwear-Related Health Issues) हो सकती हैं? BHU के फिजिकल एजुकेशन विभाग द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि जूतों को सही तरीके से न चुनने पर घुटने, पैरों और शरीर के बैलेंस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इस अध्ययन में खिलाड़ियों और आम लोगों पर जूतों के प्रभाव का विश्लेषण किया गया.

रिसर्च से क्या पता चला?

इस शोध में 15-25 साल के 1000 से 1500 खिलाड़ियों पर सर्वे किया गया। यह पाया गया कि शरीर के बैलेंस और पैरों के आर्क के अनुसार जूते न पहनने से आर्थराइटिस, फ्लैटफिट, नॉक-नी और अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है. अध्ययन में यह भी देखा गया कि खिलाड़ी या युवा समय से पहले अनफिट हो जाते हैं. खासतौर पर वे लोग, जो केवल सस्ते, सुंदर और टिकाऊ जूते खरीदते हैं, अपने स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डालते हैं.

बच्चों के विकास पर प्रभाव

शोध में इस बात पर जोर दिया गया कि बच्चों के लिए बड़े आकार के जूते खरीदने की प्रथा गलत है. बड़े जूते पहनने से बच्चों के पैरों का सही विकास रुक सकता है, जिससे आगे चलकर शरीर के संतुलन और चलने के तरीके पर असर पड़ता है. पैरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों के लिए आरामदायक और सही फिटिंग वाले जूते चुनें.

जूते चुनने के सही तरीके(Footwear-Related Health Issues)

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, जूते खरीदते समय उनकी आरामदायक फिटिंग, पैरों के आर्क और शरीर के संतुलन का ध्यान रखना चाहिए. आरामदायक जूते चुनें: हमेशा पैरों के लिए सही फिटिंग वाले जूते खरीदें. सही समय तक जूते पहनें: लंबे समय तक जूते पहनने से पैरों में थकान और दर्द हो सकता है. खेलों के लिए विशेष जूते: खिलाड़ियों को उनके खेल के अनुसार जूते खरीदने चाहिए. सही सामग्री का चयन: सांस लेने वाली सामग्री से बने जूते खरीदें ताकि पैरों में पसीना न हो. गलत जूते पहनने से न केवल आपके पैरों का विकास प्रभावित होता है बल्कि यह शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसीलिए जूते खरीदते समय उनके आराम, फिटिंग और उपयोगिता का विशेष ध्यान दें. याद रखें, “आपके जूते सिर्फ फैशन का हिस्सा नहीं, आपकी सेहत के लिए भी अहम हैं.
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Winter Sadness Remedies Ramdev: सर्दियों में उदासी से बचने के उपाय, स्वामी रामदेव का खास मंत्र https://wellnesshealthorganic.com/winter-sadness-remedies-ramdev/ https://wellnesshealthorganic.com/winter-sadness-remedies-ramdev/#respond Thu, 19 Dec 2024 10:19:38 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5765

Winter Sadness Remedies Ramdev: सर्दियों का मौसम जहां ठंडक और आराम का अहसास कराता है, वहीं यह हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकता है. ठंड के दिनों में लोग अक्सर आलस्य महसूस करते हैं, जो शारीरिक गतिविधियों को कम कर सकता है. इसके साथ ही सर्दी में धूप की कमी से सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) का खतरा बढ़ जाता है. SAD एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति हल्के से लेकर गंभीर उदासी या डिप्रेशन का अनुभव करता है. यह समस्या हमारे मूड और ऊर्जा के स्तर को भी प्रभावित कर सकती है. स्वामी रामदेव के सुझावों के अनुसार, योग और आयुर्वेद अपनाकर सर्दियों में भी सेहतमंद और ऊर्जावान रहा जा सकता है.

विंटर ब्लूज का असर

सर्दियों में विंटर ब्लूज का असर मोटापा, अवसाद, हाई बीपी, मधुमेह और हार्ट अटैक जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है. ठंड में पसीना कम निकलने के कारण ब्लड प्रेशर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ता है. इस दौरान शरीर में दर्द, ऊर्जा की कमी और थकावट जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

इन सभी समस्याओं(Winter sadness remedies Ramdev) को दूर करने के लिए नियमित रूप से योगासन और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना बेहद जरूरी है. स्वामी रामदेव के अनुसार, विंटर ब्लूज से बचने के लिए धूप में समय बिताना, कपालभाति प्राणायाम करना और गर्म पानी का सेवन करना लाभदायक होता है.

सेहतमंद जीवन के लिए आयुर्वेदिक टिप्स(Winter Sadness Remedies Ramdev)

सर्दियों में खानपान और दिनचर्या पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. शरीर को गर्म रखने के लिए गिलोय का काढ़ा, अदरक-नींबू की चाय और मेथी पाउडर का सेवन फायदेमंद होता है. वजन कम करने के लिए दालचीनी और त्रिफला का उपयोग किया जा सकता है. इसके अलावा, स्वस्थ खानपान जैसे कि करेला, लौकी, और गोभी का सेवन करें। नियमित रूप से योग मुद्रासन और मंडूकासन करें, जिससे पाचन शक्ति बेहतर होती है और वजन नियंत्रित रहता है.

हाई बीपी और शुगर को नियंत्रित करने के उपाय

हाई ब्लड प्रेशर और शुगर की समस्याओं से बचने के लिए पानी का अधिक सेवन करें और तनाव से दूर रहें. सुबह लहसुन की कलियां चबाएं और नियमित रूप से टमाटर और करेला का जूस पिएं. 6-8 घंटे की नींद लें और जंक फूड से बचें। इसके साथ ही, सर्दियों में धूप में बैठकर शरीर को विटामिन डी प्रदान करें.

स्वामी रामदेव के योग अभ्यास जैसे कपालभाति और प्राणायाम करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है. सर्दियों में इन आयुर्वेदिक और योग उपायों को अपनाकर आप न केवल स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि अपनी दिनचर्या को भी ऊर्जा और सकारात्मकता से भर सकते हैं.

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Sexual Disease Risk Comparison: सेक्सुअल डिजीज का खतरा महिलाओं से ज्यादा है या पुरुषों से? जानें असली आंकड़े https://wellnesshealthorganic.com/sexual-disease-risk-comparison/ https://wellnesshealthorganic.com/sexual-disease-risk-comparison/#respond Wed, 18 Dec 2024 13:05:06 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5758

Sexual Disease Risk Comparison: यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases – STDs) वे रोग होते हैं जो असुरक्षित यौन संबंधों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं. इन रोगों का कारण बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या फंगस हो सकते हैं. यह रोग विभिन्न शारीरिक संपर्कों के माध्यम से फैलते हैं, जैसे जननांगों, मुंह या गुदा का संपर्क.

यौन संचारित रोगों का खतरा पुरुषों और महिलाओं दोनों में होता है, लेकिन इनमें कुछ कारण ऐसे होते हैं जिनकी वजह से महिलाओं को इन रोगों का खतरा ज्यादा हो सकता है. इस लेख में हम यह जानेंगे कि क्या यौन संचारित रोग का खतरा महिलाओं को अधिक होता है या पुरुषों को, और इन रोगों से बचने के उपाय क्या हैं.

यौन संचारित रोगों के मुख्य कारण

असुरक्षित यौन संबंध (Unprotected Intercourse) यौन संचारित रोगों का प्रमुख कारण है. जब पुरुष और महिला सुरक्षा उपायों जैसे कंडोम का उपयोग नहीं करते, तो वे विभिन्न रोगों से संक्रमित हो सकते हैं. एचआईवी, गोनोरिया, सिफलिस, और अन्य यौन संचारित रोग असुरक्षित यौन संबंधों के माध्यम से फैल सकते हैं.

महिलाओं को इस खतरे का सामना ज्यादा करना पड़ता है, क्योंकि महिला शरीर में संक्रमण फैलने का खतरा पुरुषों की तुलना में अधिक होता है. इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति के एक से अधिक यौन साथी होते हैं, तो वह क्लैमिडिया (Chlamydia) और सिफलिस (Syphilis) जैसे रोगों से अधिक प्रभावित हो सकता है.

महिलाओं में अधिक खतरा क्यों?

महिलाओं में यौन संचारित रोगों का खतरा इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि उनकी शरीर संरचना पुरुषों से अलग होती है. महिलाओं के जननांगों की बनावट के कारण इन संक्रमणों को फैलने का ज्यादा मौका मिलता है. इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान यौन संचारित रोग अधिक गंभीर हो सकते हैं, जिससे नवजात शिशु में भी संक्रमण का खतरा हो सकता है. इसके अतिरिक्त, कुछ रोग जैसे एचआईवी और सिफलिस महिलाओं में जल्दी फैल सकते हैं, और उनका इलाज न किया जाए तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

महिलाओं और पुरुषों के लिए बचाव के उपाय(Sexual Disease Risk Comparison)

यौन संचारित रोगों से बचाव के लिए सबसे प्रभावी तरीका असुरक्षित यौन संबंधों से बचना है. कंडोम का सही तरीके से उपयोग करना और यौन साथी के स्वास्थ्य का सही जानकारी रखना आवश्यक है. यदि किसी को यौन संचारित रोग के लक्षण जैसे जननांगों पर जलन, दाने, या दर्द महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. महिलाओं को नियमित रूप से गाइनोकोलॉजिस्ट से चेकअप कराना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार के यौन संचारित रोग का समय पर पता चल सके.

यद्यपि यौन संचारित रोगों का खतरा पुरुषों और महिलाओं दोनों में होता है, लेकिन महिलाओं में संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होता है. इसलिये महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए और यौन संचारित रोगों के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए. किसी भी प्रकार के लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज शुरू करना चाहिए. सही जानकारी और सतर्कता से यौन संचारित रोगों से बचा जा सकता है.

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Cancer Warning Symptoms: बाथरूम में दिखें ये 2 लक्षण? तो तुरंत हो जाये सतर्क, हो सकते हैं कैंसर के यह संकेत https://wellnesshealthorganic.com/cancer-warning-symptoms/ https://wellnesshealthorganic.com/cancer-warning-symptoms/#respond Wed, 18 Dec 2024 11:58:19 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5752
Cancer Warning Symptoms: छोटी आंत का कैंसर (Small Intestine Cancer) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थिति है, जो छोटी आंत की कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के कारण होती है. छोटी आंत पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पोषक तत्वों को अवशोषित करने, पाचन में मदद करने वाले हार्मोन का उत्पादन करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में सहायक होती है. छोटी आंत का स्वस्थ रहना शरीर के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में भी अहम भूमिका निभाती है. अगर छोटी आंत में कैंसर होता है, तो शरीर में कई बदलाव(Cancer Warning Symptoms) दिखाई दे सकते हैं. इस लेख में हम छोटी आंत के कैंसर के लक्षण, कारण और बचाव के उपायों पर चर्चा करेंगे.

छोटी आंत के कैंसर के लक्षण (Symptoms of Small Intestine Cancer)

छोटी आंत में कैंसर होने पर शरीर में कुछ खास लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है. सबसे सामान्य लक्षणों में शामिल हैं: 1. मल में खून आना: मल में लाल या काले रंग का खून दिखाई देना छोटी आंत के कैंसर का संकेत हो सकता है. 2. पानी जैसा दस्त: बार-बार पतले दस्त आना भी एक चेतावनी हो सकती है. 3. पेट में दर्द: बिना किसी स्पष्ट कारण के पेट में दर्द होना या लगातार बेचैनी महसूस करना. 4. पीलिया: स्किन और आंखों के सफेद भाग का पीला पड़ना. 5. इसके अलावा, वजन का बिना किसी प्रयास के कम होना, अत्यधिक कमजोरी, मतली, उल्टी और स्किन पर लाल चकत्ते होना भी छोटे आंत के कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

छोटी आंत के कैंसर के संभावित कारण (Causes of Small Intestine Cancer)

हालांकि छोटी आंत में कैंसर के सटीक कारणों को समझना मुश्किल है, लेकिन कुछ कारक इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं. इनमें अस्वस्थ आहार, मोटापा, धूम्रपान और शराब का अत्यधिक सेवन शामिल है. इसके अलावा, पेट के लंबे समय तक संक्रमण, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग, और जेनेटिक फैक्टर भी इसकी संभावना बढ़ा सकते हैं. कमजोर इम्यून सिस्टम और कुछ विशेष प्रकार के पॉलिप्स (Polyps) का विकास भी छोटे आंत में कैंसर का कारण बन सकता है.

बचाव के उपाय (Prevention of Small Intestine Cancer)

छोटी आंत के कैंसर से बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना बेहद जरूरी है. ताजे फल, सब्जियां और फाइबर युक्त आहार का सेवन करें. प्रोसेस्ड फूड और अधिक वसा वाले खाद्य पदार्थों से बचें. नियमित रूप से व्यायाम करें और अपने वजन को नियंत्रित रखें. धूम्रपान और शराब का सेवन बंद कर दें। इसके अलावा, किसी भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्या के लक्षणों को अनदेखा न करें और समय-समय पर डॉक्टर से चेकअप कराएं.

समय पर उपचार है जरूरी (Cancer Warning Symptomsl)

छोटी आंत के कैंसर के शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय पर इलाज शुरू कराना बेहद जरूरी है. अगर बाथरूम में मल के रंग में बदलाव या अन्य लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. समय पर डायग्नोसिस और सही उपचार से इस बीमारी को प्रभावी तरीके से रोका और ठीक किया जा सकता है. छोटी आंत का कैंसर भले ही गंभीर हो, लेकिन सतर्कता और सही देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
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India Diabetes Biobank Innovation: भारत का पहला बायोबैंक, डायबिटीज के इलाज में नई क्रांति की शुरुआत https://wellnesshealthorganic.com/india-diabetes-biobank-innovation/ https://wellnesshealthorganic.com/india-diabetes-biobank-innovation/#respond Tue, 17 Dec 2024 12:02:51 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5738
India Diabetes Biobank Innovation: भारत में डायबिटीज जैसी तेजी से बढ़ती बीमारी के इलाज और शोध को नई दिशा देने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (MDRF) ने मिलकर देश का पहला डायबिटीज बायोबैंक स्थापित किया है. यह अत्याधुनिक बायोबैंक चेन्नई में स्थित है और डायबिटीज के इलाज और रिसर्च में मील का पत्थर साबित होगा.

क्या है बायोबैंक?(India Diabetes Biobank Innovation)

बायोबैंक एक ऐसा केंद्र है जहां बायोलॉजिकल सैंपल जैसे खून, डीएनए, और अन्य टिशूज़ को स्टोर किया जाता है. इन सैंपल्स का उपयोग भविष्य के शोध के लिए किया जाता है. चेन्नई स्थित यह बायोबैंक खासतौर पर टाइप 1, टाइप 2, और गेस्टेशनल डायबिटीज जैसे विभिन्न प्रकारों पर रिसर्च करेगा. साथ ही यह नए बायोमार्कर्स की पहचान करने और पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट स्ट्रैटेजी विकसित करने में मदद करेगा.

MDRF की बड़ी पहल

MDRF के चेयरमैन डॉ. वी. मोहन ने बताया कि बायोबैंक की स्थापना की प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही थी. उन्होंने कहा कि हमने युवा डायबिटीज के कई प्रकारों के ब्लड सैंपल को स्टोर किया है. यह शोध डायबिटीज के शुरुआती डायग्नोस को आसान बनाने के साथ-साथ बीमारी के जटिल पहलुओं को समझने और प्रभावी इलाज विकसित करने में मददगार होगा.

डायबिटीज की गंभीरता: रिपोर्ट के आंकड़े

एक सरकारी अध्ययन के अनुसार, जिसमें 1.2 लाख भारतीयों को शामिल किया गया था, डायबिटीज की समस्या भारत में तेजी से बढ़ रही है. 2008 से 2020 तक के आंकड़ों में 33,537 शहरी और 79,506 ग्रामीण निवासियों की जांच की गई. यह अध्ययन बताता है कि मेटाबॉलिक बीमारियों, जैसे डायबिटीज, का प्रचलन भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में चिंताजनक दर से बढ़ रहा है. शहरी क्षेत्रों में जहां जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं अधिक हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी खानपान और अस्वस्थ आदतों के कारण यह समस्या बढ़ रही है. यह स्थिति भविष्य में स्वास्थ्य पर भारी बोझ डाल सकती है, और इससे निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.
डायबिटीज बायोबैंक के मुख्य लाभ
शोध और उपचार: बायोबैंक में ICMR यंग डायबिटीज रजिस्ट्री के तहत कई ब्लड सैंपल्स स्टोर किए गए हैं। ये सैंपल्स भारतीय आबादी में टाइप 1, टाइप 2, और गेस्टेशनल डायबिटीज की विशिष्ट विशेषताओं को दर्शाते हैं। पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट: यह रोगी-विशिष्ट इलाज विकसित करने में मदद करेगा, जिससे इलाज अधिक प्रभावी होगा। नए बायोमार्कर्स: बायोबैंक नए बायोमार्कर्स की पहचान करेगा, जो बीमारी की प्रगति और डायग्नोसिस में सहायक होंगे। जटिलताओं का अध्ययन: डायबिटीज के कारण होने वाली जटिलताओं को समझने और उनके समाधान पर फोकस किया जाएगा.
भविष्य की उम्मीद
भारत का यह पहला डायबिटीज बायोबैंक बीमारी की शुरुआती पहचान और रोकथाम में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. यह न केवल भारतीय आबादी के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर डायबिटीज रिसर्च को भी नई दिशा देगा. डायबिटीज के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए यह पहल निस्संदेह एक आशा की किरण है. भारत का यह बायोबैंक भविष्य में डायबिटीज के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाएगा और शोधकर्ताओं को बीमारी के बेहतर समाधान ढूंढने में मदद करेगा.
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Hunger Affects Brain Function: भूख लगने पर क्यों नहीं चलता दिमाग? जानें वैज्ञानिक कारण, 99% लोग नहीं जानते जवाब https://wellnesshealthorganic.com/hunger-affects-brain-function/ https://wellnesshealthorganic.com/hunger-affects-brain-function/#respond Tue, 17 Dec 2024 06:54:39 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5732

Hunger Affects Brain Function: क्या आपने कभी महसूस किया है कि जब भूख लगती है, तो दिमाग ठीक से काम नहीं करता? चाहे आप किसी भी काम में लगे हों, जैसे ही भूख का एहसास होता है, आपकी सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होने लगती है. यह केवल एक सामान्य अनुभव नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक कारण भी है. आइए जानते हैं कि भूख और दिमाग का आपस में क्या कनेक्शन है और क्यों खाली पेट रहने पर दिमाग काम करना बंद (Hunger Affects Brain Function) कर देता है.

खाली पेट रहने से क्या होता है?

जब हमें भूख लगती है, तो हमारे शरीर में गट हार्मोन घ्रेलिन(Hormone Ghrelin) का स्तर बढ़ जाता है, जो सीधे दिमाग पर असर डालता है. इस हार्मोन का स्तर बढ़ने से दिमाग की कार्यक्षमता प्रभावित होती है. खाली पेट रहने से ब्लड शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव आता है, जिससे सुस्ती और थकान महसूस होती है. साथ ही, स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर भी बढ़ जाता है, जो मानसिक तनाव और चिंता को बढ़ाता है, और इस कारण दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाता.

भूख का दिमाग से कनेक्शन

विज्ञान में एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है कि दिमाग का वह हिस्सा जो फैसले लेने का काम करता है, वह गट में मौजूद हंगर हार्मोन पर निर्भर होता है. जब घ्रेलिन का स्तर अधिक हो जाता है, तो यह दिमाग की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है. शरीर में बनने वाला 50% डोपामिन और 95% सेरोटोनिन गट में ही बनता है. डोपामिन, एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो हमें खुशी और संतुष्टि का अहसास कराता है, जैसे खाने के बाद या नींद पूरी होने पर.

भूख के कारण दिमाग का काम न करना(Hunger Affects Brain Function)

जब हम भूखे होते हैं, तो न तो सेरोटोनिन बन पाता है, न ही डोपामिन. इसके बजाय, शरीर में कोर्टिसोल बनने लगता है, जो स्ट्रेस को बढ़ाता है और मूड को खराब करता है. इसके अलावा, ब्रेन से सीधे पेट और कोलन तक जाने वाली वेगस नर्व गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के सिग्नल दिमाग तक भेजती है, जिससे दिमाग को यह संकेत मिलता है कि शरीर तनाव में है. यही कारण है कि जब किसी चीज को लेकर घबराहट या नर्वसनेस होती है, तो पेट में दर्द होने लगता है.

इस प्रकार, भूख और दिमाग के बीच एक गहरा संबंध है, जो न केवल मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. जब हमें भूख लगती है, तो हमारा दिमाग अस्थायी रूप से काम करना बंद कर देता है, और यह सभी के लिए एक सामान्य शारीरिक प्रतिक्रिया है. इसलिए, अपने शरीर को समय-समय पर उचित आहार देना जरूरी है, ताकि दिमाग सही तरीके से कार्य कर सके और मानसिक शांति बनी रहे.

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Suicide Risk Age Scientists Findings: इस उम्र में लोग क्यों उठाते हैं सुसाइड जैसे कदम? वैज्ञानिकों ने किया बड़ा खुलासा https://wellnesshealthorganic.com/suicide-risk-age-scientists-findings/ https://wellnesshealthorganic.com/suicide-risk-age-scientists-findings/#respond Tue, 17 Dec 2024 06:09:48 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5726

Suicide Risk Age Scientists Findings: हाल ही में AI इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड(Suicide) केस के बाद सुसाइड पर चर्चा ने एक नया मोड़ लिया है. न्यूज चैनल, अखबार और सोशल मीडिया पर आत्महत्या के मामलों पर जोर-शोर से बात हो रही है. खासकर युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आत्महत्या के मामले दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले कहीं अधिक हैं, और यह चिंता का विषय बन चुका है।

भारत में आत्महत्या के आंकड़े (Suicide Risk Age Scientists Findings)

एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 30 से 45 साल की उम्र के लोग आत्महत्या करने में सबसे आगे हैं. इसके बाद 18 से 30 साल की उम्र के युवा और फिर 45 से 60 साल के लोग आते हैं. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 15 से 19 साल की किशोरावस्था के दौरान आत्महत्या मृत्यु का चौथा बड़ा कारण बन चुका है. भारत में हर रोज 160 से ज्यादा युवा आत्महत्या कर रहे हैं.

आत्महत्या के कारण

एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर नंद कुमार बताते हैं कि आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने के पीछे कई कारण हैं. इनमें परिवार में तनावपूर्ण माहौल, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, नशीली दवाओं का सेवन, रिश्तों में दरार और अकेलापन जैसे कारण प्रमुख हैं.

ग्लोबल अध्ययन और भारत में स्थिति

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी इस पर शोध किया है और पाया कि उम्र दराज युवाओं में हार्मोनल चेंजेस और बढ़ते तापमान के कारण आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है. भारत में आत्महत्या(Suicide) युवाओं के लिए एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है, और इससे निपटने के लिए मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाना और सही समर्थन प्रणाली बनाना जरूरी है.

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Colon Cancer: कहीं आपके किचन में ही तो नहीं छिपा कैंसर का कारण? https://wellnesshealthorganic.com/colon-canceris-cancer-in-your-kitchen/ https://wellnesshealthorganic.com/colon-canceris-cancer-in-your-kitchen/#respond Mon, 16 Dec 2024 07:04:36 +0000 https://wellnesshealthorganic.com/?p=5713
Colon Cancer: वर्तमान में कैंसर महामारी की तरह फैल रहा है, इसलिए हर दो में से एक व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है. ऐसे में कोलन कैंसर(Colon Cancer) के कारणों को जानने की जरूरत है. सूरजमुखी, अंगूर, कैनोला और मकई के बीज जैसे बीज तेलों को एक नए अध्ययन ने कोलन कैंसर के बढ़ते मामलों के संभावित कारणों के रूप में बताया है. शोधकर्ताओं का मानना है कि पश्चिमी आहार में व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले ये तेल को कोलन में ट्यूमर के विकास को बढ़ा सकते हैं क्योंकि वे पुरानी सूजन का कारण बन सकते हैं.

अमेरिका में हुआ है शोध

Research on cancer: अमेरिकी सरकार के नेतृत्व वाले जर्नल गट में प्रकाशित अध्ययन में 30 से 85 वर्ष की आयु के 80 से अधिक लोगों के कोलन कैंसर के ट्यूमर का विश्लेषण किया गया था. शोधकर्ताओं ने पाया कि ट्यूमर में बहुत सारे बायोएक्टिव लिपिड हैं, जो शरीर द्वारा बीज तेलों का चयापचय करते समय बनाए गए तैलीय अणु हैं. ये जैव सक्रिय लिपिड बढ़ी हुई सूजन, विलंबित उपचार और कैंसर कोशिकाओं के विकास से जुड़े हैं.

क्या कहते है इस पर वैज्ञानिक?

चिकित्सक-वैज्ञानिक डॉ. टिमोथी येटमैन ने जोर देकर कहा कि बीज तेल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और अतिरिक्त शर्करा सहित पश्चिमी आहार पर पुनर्विचार करने की तत्काल आवश्यकता है. “कैंसर एक पुराने घाव की तरह है जो ठीक नहीं होगा.”दैनिक रूप से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से दूर रहने से आपका शरीर सूजन और प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जो कैंसर को बढ़ाता है. अध्ययन बीज तेलों से जुड़े खतरों को उजागर करता है, लेकिन यह स्वस्थ तेलों की ओर भी संकेत करता है.

तेल का गलत इस्तेमाल (Colon Cancer)

Oil causes cancer: दरअसल, हर घर में कुकिंग या फ्राई करने के लिए “रिपीटेड ऑयल हीट” प्रयोग किया जाता है. इससे तेल में एक्रेलैमाइड, ट्रांस फैट और ऑक्सीडेशन फैट इंफॉर्मेशन होने लगते हैं. याद रखें कि एक्रेलैमाइड का फॉर्मेशन कैंसर के रिस्क को बढ़ाता है, जबकि ट्रांस फैट हृदय के लिए खतरनाक बन जाता है. यदि आप घर पर एक ही तेल को कई बार पूरी, भटूरे, पकोड़े आदि तलने के लिए प्रयोग करते हैं, तो ऐसा करना बंद करें. ICMR गाइडलाइन के अनुसार, पूरी या किसी चीज को तलने के लिए तेल को हीट करने से पहले उसे कम से कम छान लें. अगले दो से तीन दिनों में इसे सब्जी बनाने के लिए प्रयोग करें, लेकिन फिर से उसे फ्राई नहीं करें. इसके अलावा, बाहर से खाने से बचें। इससे कैंसर का खतरा कम हो सकता है.
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